प्रशिक्षण शिविर

जो व्यक्ति गुरुकुल में प्राप्त होने वाली विभिन्न योग्यताओं का लाभ नहीं उठा सकते हैं उनके लिए विभिन्न विषयों के प्रशिक्षण शिविर आयोजित किये जायेंगे। वे निम्न प्रकार हैं-

  1. बालक चरित्र-निर्माण-शिविर।
  2. व्यक्तित्व निर्माण शिविर।
  3. संस्कृत संभाषण शिविर।
  4. योग साधना शिविर।
  5. राष्ट्र धर्म शिविर।
  6. शास्त्राध्ययन शिविर।
  7. प्रशिक्षक प्रशिक्षण शिविर।

1. बालक चरित्र निमार्ण शिविर:-

इसमें हम बच्चों के मन के अन्दर उन बीजों को डालने का प्रयास करेंगे जो कि उनको आगे जाकर एक सशक्त, धार्मिक, निश्चल, समझदार, राष्ट्रभक्त एवं जिम्मेदार नागरिक बना सकें। इस शिविर में निम्न विशेषताएँ व विषय होंगे-

  1. वैदिक सिद्धांत (धर्म, अष्टांगयोग, तत्व, वैदिक साहित्य वृक्ष, विज्ञान)।
  2. आचार व्यवहार, स्वास्थ्य, भोजन संबंधी ज्ञान।
  3. संध्या-हवन के मंत्र, संस्कृत भाषा में श्लोक व गीत।
  4. महापुरुषों की कहानियाँ, रामायण, महाभारत।
  5. शारीरिक – विभिन्न आसन, व्यायाम, लाठी, तलवार, बन्दूक, मलखम, रस्सी मलखम आदि।

यह शिविर 8-14 वर्ष के बच्चों के लिये (बालक व बालिकाएं अलग-अलग) होगा और शिविर अवधि 20 दिन की होगी।

2. व्यक्तित्व निर्माण शिविर:-

इसमें उपरोक्त सभी विषयों के अतिरिक्त युवाओं के लिये व्यक्तित्व विकास के लिये कुछ ऐसे विषय जोड़े गये हैं जिनको व्यवहार में लाने से वह युवक समाज में अत्यन्त प्रभावशाली बन सकता है।

  1. राज संपत्, (ये शब्द कौटल्य अर्थशास्त्र के अन्दर वर्णित है।) अमात्य संपत्, वृद्धसंयोग, राजन्यवृत्त, कृत्याकृत्य पक्षरक्षण, उपग्रह, षाड्गुण्य आदि।
  2. वर्तमान वैश्रिक व्यवस्था व आदर्श वैश्विक व्यवस्था।
  3. वर्तमान व्यवस्था में अपना स्थान व अपना कर्तव्य।

यह शिविर 15- 22 वर्ष के युवाओं का लिये होगा और शिविर अवधि 20 दिन की होगी।

3. संस्कृत संभाषण शिविर:-

इसकी अवधि 12 दिन की होगी और विशेष आयु सीमा नहीं होगी। इस शिविर का उद्देश्य व्यक्ति को संस्कृत भाषा में धारावाहिक बोलने में व अपना समस्त वाग्व्यवहार संस्कृत भाषा में करने में समर्थ बनाना है। इस प्रकार जन सामान्य को संस्कृत संभाषण का अभ्यास कराते हुए संस्कृत को राष्ट्र भाषा का दर्जा दिलाने का प्रयास इस शिविर के माध्यम से किया जावेगा।

4. योग साधना शिविर:-

इसमें पातंजल योग दर्शन के अनुसार साधना करने का क्रियात्मक प्रशिक्षण दिया जावेगा व इसके लिये आवश्यक दार्शनिक वैदिक सिद्धान्तों का ज्ञान कराया जायेगा। अष्टांग योग के साथ-साथ व्यक्ति को योगमार्ग में आगे बढ़ने के लिये आवश्यक आत्मनिरीक्षण, निदिध्यासन आदि क्रियाओं का अभ्यास कराया जायेगा। इस शिविर में साधक योग साधना का विशुद्ध स्वरूप को जानेगा तथा दुःख, दुःख का कारण, दुःख से मुक्ति का स्वरुप, मुक्ति का उपाय इन चार विषयों को जानकर अपने जीवन को सार्थक बना सकेगा।

5. राष्ट्र-धर्म शिविर:-

आज अनेक युवक समाज के सुधार को लेकर निकले हुए हैं और अपने-अपने ज्ञान व सामर्थ्य के अनुसार कार्य भी कर रहे हैं। पर प्रायः नये नये निकले युवाओं को व कई अनुभवी समाज सुधारक व्यक्तियों को भी समाज, उसको बिगाड़ने वाले तत्व, बिगाड़ की प्रक्रिया, सुधार का स्वरूप, उसके लिये रणनीति आदि के ज्ञान का अत्यन्त अभाव होने के कारण उनके प्रयास परिणामोन्मुख नहीं हो पा रहें हैं। एक आदर्श राष्ट्र के निर्माण के इच्छुक व्यक्ति के लिये आवश्यक सभी विषयों का ज्ञान कराना इस शिविर का लक्ष्य है। इस शिविर में निम्न विषिय सम्मिलित होंगे-

  1. वैयक्तिक व सामाजिक मनोविज्ञान, व्यक्ति का एक दूसरे के पूरक बनते हुए अपनी स्वार्थ की सिद्धि करने की प्रक्रिया।
  2. एक आदर्श राष्ट्र व विश्व का स्वरूप।
  3. वर्तमान विश्व की विभिन्न प्रकार की (प्रशासनिक, आर्थिक आदि) व्यवस्थाएँ।
  4. वर्तमान विश्व के सामर्थ्यशाली देश, व्यक्ति, उनके सामर्थ्य का आधार, उनसे विश्व पर दुष्परिणाम।
  5. विश्वभर की विभिन्न प्राकृतिक संपदा, उनके आयात निर्यात की स्थिति।
  6. समाज में होने योग्य विभिन्न मूल्य, वर्तमान व्यवस्था में उनके बिगाड़ की प्रक्रिया।
  7. सुधारक व परिवर्तक की योग्यताएँ, आवश्यक साधन व रणनीति के कुछ सूत्र।
  8. प्राचीन भारत में बौद्धिक व विभिन्न पहलुओं में वैभव।

6 शास्त्राध्ययन शिविर:-

यह उन व्यक्तियों के लिये है जो कि गृहत्यागी हैं सदाचारी हैं और प्राचीनशैली से कुछ दर्शन व अन्यशास्त्र पढ़ना चाहते हैं। यह एक प्रकार से गुरुकुल है। प्रवेश 20 वर्ष से बड़े उम्र के व्यक्ति का ही होगा।

7 प्रशिक्षक प्रशिक्षण शिविर:-

इसमें उपरोक्त विभिन्न शिविरों के लिए प्रशिक्षकों का निर्माण होगा। जो व्यक्ति जिस शिविर का प्रशिक्षक बनना चाहता है पहले उसको 3-4 बार कर चुका हो व संबंधित साहित्य का स्वाध्याय कर चुका हो यह आवश्यक है। ऐसे व्यक्ति को इस शिविर में तत्संबंधी विशेष ज्ञान व शंका-समाधानादि के द्वारा निष्णात बनाकर उनका परीक्षण करके उनको प्रशिक्षक की उपाधि दी जायेगी।

इसके अतिरिक्त प्राकृतिक कृषि, गोपालन, व अनेक प्रकार के शिल्पों (कारीगरी, skills) के विषय में भी प्रशिक्षण शिविरों का समय समय पर आयोजन किया जाएगा।